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EVM Washing Machine Mei Dhuli

EVM Washing Machine Mei Dhuli
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क्या हमारे लोकतंत्र की नींव हिल रही है?
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) को लेकर भारत में लंबे समय से संदेह और बहस जारी है। यह सवाल करोड़ों जागरूक भारतीयों के मन में है कि यह मशीन लोकतंत्र का उपकरण है या फिर भ्रम का यंत्र । एक समय था जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने खुद EVM की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न खड़ा किया था—यहाँ तक कि एक विस्तृत पुस्तक भी प्रकाशित करवाई गई। परन्तु सत्ता में आने के बाद वही पार्टी अब EVM का सबसे बड़ा रक्षक बन गई है।

इस पुस्तक में हम उन सवालों को उजागर करते हैं जिन्हें समय के साथ दबा दिया गया—क्या EVM वाकई सुरक्षित है? क्या मतदाता का मत सही गिनती तक पहुँचता है? क्या कोई भी प्रणाली अपराजेय हो सकती है?

"ई वी एम वाशिंग मशीन में धुली”?" शीर्षक से यह पुस्तक तकनीकी, राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से इस बहस को सामने रखती है। इसमें विपक्ष के आरोप, तकनीकी विशेषज्ञों की राय, और आम नागरिकों की चिंता को प्रामाणिक तथ्यों और घटनाओं के साथ जोड़ा गया है। यह पुस्तक न सिर्फ एक तकनीकी उपकरण और उसके काम करने के सलीके की कहानी है, बल्कि एक ऐसे लोकतंत्र की भी कथा है जिसे भरोसे और पारदर्शिता की तलाश  है।

पढ़िए, सोचिए, और सवाल पूछिए—क्योंकि एक जागरूक नागरिक ही सच्चे लोकतंत्र की सबसे मजबूत नींव है।

संजय कुमार सिंह छपरा के मूल निवासी हैं और उनका बचपन जमशेदपुर की खूबसूरत टेल्को कॉलोनी में बीता। स्कूल में रहते हुए ही हिन्दी और अंग्रेजी अखबारों के लिए लिखते हुए आखिरकार इंडियन एक्सप्रेस समूह के हिन्दी अखबार जनसत्ता के लिए प्रशिक्षु उपसंपादक चुन लिए गए। वहां 1987 से 2002 तक रहे। वीआरएस लेकर अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद किया और ‘अनुवाद कम्युनिकेशन’ के संस्थापक हैं। यह उनकी तीसरी पुस्तक है। पहली, “पत्रकारिता : जो मैंने देखा, जाना, समझा” और दूसरी, “जीएसटी : 100 झंझट” है।